अपर्णा पोद्दार ‘शैलजा’, (दिव्यालय साधिका) , संबलपुर (ओड़िशा)
नव मानवतावाद और स्वाध्याय में सत्संग
कण-कण में प्रभु वास है, माया यह संसार।
किया मनुज जीवन सफल, सत्संगति व्यवहार ।।१।।
छल प्रपंच से दूर मन, रमता नित सत्संग ।
लोभ मोह चिंता घटी, जीवन में नवरंग ।।२।।
सहज कमाया धन बहुत, किया नहीं उपकार ।
मन अब नित सत्संग सुन, जाना है भवपार ।।३।।
श्रवण मनन स्वाध्याय कर, संत समागम नित्य।
सत्य मार्ग कर अनुसरण, सिद्ध सकल औचित्य।।४।।
सहज सरल यह साधना, नित्य नियम हिय तौल ।
निज मन के स्वाध्याय से, बदल गया माहौल ।।५।।
करें आत्म मंथन स्वयं, श्रवण करें सद्ग्रंथ ।
गूढ़ ज्ञान अनमोल सुलभ, चलें स्वाध्याय पंथ ।।६।।
शुद्ध चित्त पावन मनन, करें सत्संग नित्य ।
नियम स्वाध्याय साधना, जीवन नित आदित्य ।।७।।
अपना मन भी जान लो, देखो दोष विकार ।
चिंतन करना तब स्वयं, जीवन के दिन चार ।।८।।