– गौतम प्रधान “मुसाफ़िर”
सुभाष तुम्हारे नाम से
अपनी दुकान चला रहे।
स्वराज हित बलिदान
अन्य नाम से सजा रहे।
आजादी की दीवानगी
यह तुमने बताया था।
अपना हक कैसे लेना
ऐसा तुमने जताया था।
क्रान्ति का फूंक बिगुल
आह्वान आजादी मिले।
फिर से भारत में हमारे
स्वराज का फूल खिले।
श्रद्धांजलि तुम्हें हो देना
पूरा करें तुम्हारा सपना।
त्याग तपस्या जो किया
उसे समझें सब अपना।