– व्यंजना आनन्द ‘मिथ्या’ L.F.T, बेतिया, बिहार
तीन आसुरी शक्तियाँ, करे धरा पर पाप ।
धरती को है रौंधती, एडम स्मिथ है शाप ।।
स्वार्थ भरा था उस हृदय, स्वार्थी किया विकास ।
ऐसे नर से ही हुआ, प्रेरक तत्वों हास ।।
अलग सोच लेकर प्रउत, फैला है चहुँओर ।
दर्श सुहानी है जहाँ, है विकास की भोर ।।
शोषक शोषण कर रहे, चुने स्व हित सरकार ।
अपने ही बस स्वार्थ से, बदले हैं हर बार ।।
हाथों का पुतला बना, पकड़े उनकी डोर ।
भला यहाँ क्या हो सके, सुखद सुहानी भोर ।।
धन संचय की होड़ है, फैला पूंजीवाद ।
अब तो नैतिकवान ही, करता भू पर नाद ।।
होता है चहुँ अपहरण, मानस गिरे विचार ।
लाचारी से टूटते, बस गरीब हरबार ।।
जेहादी के नाम पर, आतंकी का पाप ।
महिला पर बरसे सदा, देखो कैसा शाप ।।
कहे भावजड़ता प्रउत, अवहेलित कर आज ।
उठा रहा आह्वान है, बदल घृणित यह काज ।।
खत्म तीसरी शक्ति है, पर कुछ ओढ़े खोल ।
उसे उजागर अब करो, प्रउत दर्श को बोल ।।
प्रउत व्यवस्था है बड़ी, सुंदर सुखद प्रवाह ।
मानव हृदय अनंत का, चुन लेता है राह ।।
आदर्शाभिमुखी यहाँ, जो चलते है आज ।
ऐसे नैतिकवान पर, भू भी करती नाज ।।
है रोटी उद्योग की, प्रगतिशील बस तत्व ।
इसके ही उपयोग से, मिले प्रउत का सत्व ।।
जिसमें देखें हम सभी, जग के जीव विकास ।
विप्लव तब होता सदा, दुःख न आता पास ।।
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